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I am a common man full of complexities. I am an idiot son, lucky husband, proud father and poor earner. No body can understand me and no body is able to convince me. I am a single piece on this earth. I do, what I like.

Friday, October 1, 2010

मजहब हीं है सिखाता, आपस में बैर रखना



मजहब हीं है सिखाता, आपस में बैर रखना

अयोध्या का बिवाद अब  एक मजहबी बिवाद बन गया है. बाबरी मस्जिद के गिराए जाने से पहले तक यह बिवाद एक राजनैतिक बिवाद हुआ करता  था.

इस बिवाद के बीच में  नेताओं के आ जाने से पहले तक यह एक जमीन के मिलकीयत का बिवाद मात्र था.जमीन के एक टुकड़े का बिवाद अब धार्मिक बिवाद बन गया है.

ऐसा भी नहीं है कि धर्मों  के बीच यह पहला बिवाद है. जितने भी धर्मं इस धरती पर हैं, सबों का बुनियादी स्तित्व बिवादों पर ही टीका है. सभी धर्मों का मूल आधार उसकी  मान्यताएं और उसे मानने वालों क़ी जीवन शैली  हीं है. सभी  मान्यताएं बिवादित और अप्रासंगिक है.


सभी धर्म अपनी-अपनी मान्यताओं को पीढ़ी दर पीढ़ी वगैर किसी परिशोधन और परीसंशकरण के ढोते चलें आ रहें है. सभी धर्मों की स्थापना किसी ना किसी आत्मज्ञानी महापुरुष के द्वारा की गयी थी. अब ना तो वे आत्मज्ञानी महापुरुष रहे और ना हीं उनका आत्मज्ञान रहा. जिस काल में मुख्य धर्मों की स्थापना हुई थी उस काल से आजतक सबकुछ बदल गया, लेकिन धर्मों की मान्यताएं  नहीं बदली. 


धर्म के ठेकेदारों की दलील  है कि सत्य नहीं बदलता और धर्मं भी एक सत्य है, इसलिए इसकी मान्यतान्यें भी नहीं बदलने दी जाएँगी.  ठीक है, मूल सत्य कभी  नहीं बदलता. लेकिन मूल सत्य से बनी हुई सारी चीजें परिवर्तनशील और बदलने वाली है. धर्म कि स्थापना भी मूल सत्यों के आधार पर हुई थी. हमारा धर्म मूल सत्य नहीं है. मूल सत्य एक ही होता है और धर्म कई हैं. इसलिए धर्मं भी समय के साथ परिवर्तनशील है और रहेगा. मूल सत्य नहीं बदलेगा, परन्तु धर्म तो हमेशा बदलता रहेगा, उसके रूप, नाम और गुण बदलतें रहेंगे. इश्वर के आलावा कुछ भी निर्गुण नहीं. धर्म भी नहीं. जब निर्गुण नहीं मतलब परिवर्तनशील है.


अगर आज हमने अपने-अपने धर्मिक मान्यताओं को लचीला और समयानुकूल नहीं बनने दिया तो धर्मों के बीच  बिवाद बढ़ते रहेंगे. आज राम जन्म भूमि को लेकर झगड़ा हो रहा है, क़ल राम के जन्म को हीं लेकर झगड़ा होगा और परसों राम को ही लेकर झगड़ा होने लगेगा.


हर कोई यह जानता है कि राम ना तो अयोध्या में है, ना हीं कावा में. वे तो आस्थावानों के ह्रदय और आस्था  में विराजमान हैं. राम जन्म भूमि को आस्था का विषय बताया गया है जो कि गलत हीं नहीं हिन्दू धर्म कि मान्यताओं के भी खिलाफ है. हिन्दू धर्म कि मान्यताओं के अनुसार, राम अचर, अगोचर, सर्वज्ञ, सर्व-विद्यमान और सर्वमान्य हैं. इन मान्यताओं को तो सबों ने छोड़ दिया, परन्तु राम के जन्म स्थल कि आस्था को पकड़ कर बैठे है.


सबों ने पढ़ा है कि राम अयोध्या में जन्में थे. परन्तु वे केवल जन्में ही नहीं थे, उन्होंने अपने जीवन काल में और भी बहुत कुछ किया था. उनकी सारी जीवन लीला हिन्दू धर्म के मान्यताओं से जुडी है. फिर हम अन्य मान्यताओं को क्यों नहीं पकड़ कर बैठे है. असल बात यह है कि राम को तो हमने छोड़ दिया है, अब केवल उनके स्मृति स्थलों को पकड़ कर बैठें हैं. अब राम हमारी आस्थाओं में नहीं, जमीन, जायजाद और संपदाओं में बस गएँ हैं.


सवाल है, राम को किसने देखा? राम अयोध्या में हीं जन्मे, इसका भी कोई साबुत कोर्ट को नहीं मिला. पुरातत्वा विभाग को भी नहीं मिला. तो फिर राम कहाँ जन्मे ?


जबाब है, राम हमारे दिलों में जन्मे, वे हमारी आस्था और विश्वाश में बसे हैं. राम को किसी जन्म स्थल या मंदिर कि जरुरत नहीं है. राम कल भी थे, आज भी है और हमेशा रहेंगे. राम केवल हिन्दू धर्म के धरोहर नहीं है.

राम तो करोडो हिन्दुस्तानियों के मर्यादा पुरुषोत्तम हैं. राम केवल हिन्दुओं के नहीं, वे तो सभी धर्मों के राम है. राम नाम नहीं. राम तो परम सत्य हैं जिसपर सबों का अधिकार है. राम को जन्म लेने क़ी या मरनें क़ी जरुरत नहीं होती.


केवल अयोध्या की जन्म स्थली हीं नहीं, यह पूरा जगत, पूरा ब्रह्माण्ड राम का है. हम भी राम के है. तुम भी राम के हो. हिन्दू भी राम के और मुस्लमान भी राम के हीं है. ये धर्म के ठेकेदार भी राम के है. यह धर्म भी राम का हीं है. ये झगड्नेवाले भी राम के है. फिर भी ये राम के नाम पर आपस में झगड़ा करतें हैं.


सवाल यह है कि झगडा हो क्यों रहा है ? जब सब कुछ राम का है तो फिर झगडा क्यों हो रहा है? 


जबाब है कि झगड़ने वालों के दिल में अब राम नहीं रहे. वे तो राम और रहीम के नाम पर बस अपनी रोटियां सेंक रहें है. हमारे धर्मों कि मान्यतान्यें ही अब हमें आपस में बैर रखना सिखला रही है . एक धर्म कहता है कि यह जमीन मेरे राम कि है तो दूसरा धर्म यह कहता है यह जमीन मेरे अल्ला कि है. 


असली बात यह है कि ऐसा कहने वाले ना तो राम को जानते और ना ही अल्ला को मानतें है. वे तो बस राम और रहीम के नाम पर धर्मालंबियों को आपस में लड़ा रहें है और अपनी सियासत कि रोटिया सेंक रहें है.  

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