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I am a common man full of complexities. I am an idiot son, lucky husband, proud father and poor earner. No body can understand me and no body is able to convince me. I am a single piece on this earth. I do, what I like.

Tuesday, September 28, 2010

अनुलोम और विलोम


अनुलोम और विलोम

अनुलोम और विलोम दोनों एक ही सिक्के के दो अलग अलग पहलू हैं। प्रेम अगर प्यार है तो नफरत, घृणा है। लेकिन प्यार और नफरत दोनों एक ही श्रोत प्रेम से उत्त्पन्न हुए हैं। प्यार और नफरत दोनों ही स्थितियों में उत्त्पन्न भावनाओं का मूल श्रोत और उर्जा एक ही होती है। फर्क सिर्फ उस मूल श्रोत से उत्त्पन्न उर्जा की तीव्रता और दशा स्थिति का होता है।

हम अक्सर अनुलोम और विलोम दोनों को अलग-अलग रूप में देखने की गलती कर बैठतें हैं। मगर सच में दोनों एक ही है। बस केवल रूप अलग -अलग है।


दोस्ती अगर सकारात्मक है तो दुश्मनी नकारात्मक। मगर है दोनों एक ही। अगर हम दोस्ती को नहीं जानते तो दुश्मनी को भी नहीं जानते। दोस्ती और दुश्मनी दोनों भावों के अन्दर मौजूद उर्जा के मूल श्रोत एक हीं है। बस केवल दोनों की तीब्रता और दशा का अंतर है।

प्यार से ही नफरत उत्त्पन्न होता है और दोस्ती से हीं दुश्मनी भी उत्त्पन्न होती है। दोनों की उर्जाओं के मूल श्रोत एक ही है । बस केवल रूप अलग अलग है और इसी कारण हम दोनों भावों को अलग अलग रूप में देखतें है।

अगर प्यार नहीं होता तो नफरत भी नहीं होती । अगर दोस्ती नहीं होती तो दुश्मनी भी नहीं होती। जहाँ एक है वहां उसका विलोम भी रहेगा ही। देखते ही देखते कुछ कारकों की वजह से प्यार नफरत में और दोस्ती दुश्मनी में बदल जाती है। उसकी उर्जा और उर्जा के श्रोत तो वही होतें है बस उसकी तीब्रता और दशा बदल जाती है और इसे हम नजरअंदाज कर जातें है। फिर शुरू हो जाती है अशांति।

शांति और अशांति भी इसी तरह एक ही उर्जा के दो अलग अलग रूप है। लेकिन दोनों के स्वरुप और परिणाम में कितना अंतर है। शांति और अशांति दोनों ही स्थितियों में उर्जा के मूल श्रोत एक ही होतें है। बस कुछ कारकों की वजह से उस सामान उर्जा की तीब्रता और दशा में अंतर आ जाता है और सबकुछ उल्टा पुल्टा हो जाता है।

बस यही मूल उर्जा या शक्ति अलग -अलग कारको की वजह से इस माया जगत में श्रृष्टि और भावनाओं के अलग अलग खेल रचती रहती है और हम इसे अलग अलग समझ कर अपने आप को परेसान करतें रहतें है।

मानें या ना मानें, मगर यह जान लें की इस माया जगत में जो दीखता है वह सत्य नहीं है। हम केवल एक अधुरा सत्य देखतें है। इस अधूरे सत्य के पीछे छुपे उसे पुरे सत्य को नहीं देख पाते। अगर देख लें तो समझे, अब कुछ भी जानना शेष नहीं.

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