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I am a common man full of complexities. I am an idiot son, lucky husband, proud father and poor earner. No body can understand me and no body is able to convince me. I am a single piece on this earth. I do, what I like.

Monday, September 27, 2010

सत्य की सत्यता

सत्य की सत्यता


सत्य वो नहीं है, जो हम जानते है। सत्य वो है, जिसे हम नहीं जानते। सत्य जानने या पहचानने की चीज नहीं है। सत्य आत्मसात करने की चीज है।





सत्य केवल एक है और बाकी सब जो हम जानते है, सब उसीके अनेक रूप मात्र है। जिसने उस एक सत्य को जान लिया, वह सत्य के सभी रूपों को जान लेता है।





सत्य तक पहुंचा जा सकता है। वाकई यह संभव है। सत्य के बदलते रूपों को देखा जा सकता है। इस जगत में सबकुछ कैसे बदल रहा है और इन सारे बदलवो के पीछे के सत्य को हम जान सकतें है।





सत्य को जानने के लिए हमें अपने वजूद को मिटाना होगा। हमें अपने कुदरती रूप में वापस आना होगा। हमें वो सब कुछ भूल जाना होगा, जो हमने आजतक सिखा या जाना है।





जब हम अपने चित पर अंकित सारे भौतिक छाप को मिटा देंगे तो सत्य का स्वंयं उद्भव होगा और चित में परम सत्य का प्रकाश उदित होगा। सत्य का यह प्रकाश हमें सबकुछ स्पष्ट रूप से दिखने लगता है।





जब सत्य अपने पूर्ण स्वरुप में चित्स्थल पर उदित होता है तो हम इस माया जगत को जानने लागतें हैं। हमें यह मालूम होने लगता है की इस जगत में सबकुछ कैसे घटित हो रहा है।





सत्य को जान लेने के बाद यह मालूम हो जाता है की इस जगत में उत्पन्न सारे भौतिक किर्या कलाप और भावनाओं का मूल श्रोत एक ही है। इस जगत में मौजूद सारी उर्जा, उसके स्वरुप, उसके रूपांतरण और उसके द्वारा उत्पन्न भौतिक संरचनों की विस्तृत जानकारी हमें मिल जाती है। सत्य को जान लेने के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता।





जो हम जानते वह सत्य नहीं। सत्य तो वो है जिसे हम नहीं जानते।

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